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न दया-भाव कोई, न शिकायत, न रोना-धोना,
सब कुछ बीत जायेगा सेब के झरते फूलों की तरह,
सुनहले पतझर के रूप पर मोहित
मैं न रह सकूँगा अब और अधिक युवा।
ठण्ड से ठिठुरते मेरे हृदय!
तू भी धड़का नहीं करेगा और अधिक।
भुर्ज वृक्षों से भरा मेरा यह देश मुझे
ललचायेगा नहीं नंगे पाँव चलने के लिए।
ओ मेरे आवारा मन!
कविता की प्रेरणा नहीं मिल रही तुझसे अब।
ओ मेरी खोई ताजगी,
आँखों की उत्कटता, भावों के प्रवाह!
और अधिक कृपण हो गया हूँ अपनी इच्छाओं में,
ओ जीवन, तुम क्या मात्र सपना थे?
मैं जैसे संगीतमय बहार की सुबह में
सवार हूँ नीले घोड़े पर।
इस संसार में हम सब नश्वर हैं
आहिस्ता-आहिस्ता टपक रहा है ताँबा मेपलों से।
खुशकिस्मत रहे तुम हमेशा
कि मुरझाने और मरने का आ गया है अब समय।
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